बिहार की राजनीति: 2024 से सबक और 2025 के मिशन में ‘R’ पर फोकस, NDA का राजपूत वोटरों पर बड़ा दांव Politics

बिहार की राजनीति: 2024 से सबक और 2025 के मिशन में ‘R’ पर फोकस, NDA का राजपूत वोटरों पर बड़ा दांव

बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण का महत्व कभी खत्म नहीं हुआ। यह सच्चाई है कि राज्य के राजनीतिक दल चुनावी मैदान में उतरने से पहले जातीय समीकरणों को मजबूत करने की रणनीति बनाते हैं। बिहार में एक बार फिर एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की नजर अपने परंपरागत राजपूत वोट बैंक पर है। 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में यह तबका एनडीए से थोड़ा छिटक गया था। 2025 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए एनडीए ने अब इसे अपने पक्ष में लाने की कवायद शुरू कर दी है।

राजपूत वोटरों का महत्व और एनडीए की रणनीति

बिहार में जातिगत गणना के अनुसार, राजपूत समुदाय की आबादी लगभग 3.5 प्रतिशत है। हालांकि, यह वर्ग राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली माना जाता है। राजपूत वोटरों की भूमिका राज्य की कई सीटों पर निर्णायक होती है। लोकसभा चुनाव 2019 और 2024 में कुछ सीटों पर राजपूत वोटरों की नाराजगी के चलते एनडीए को हार का सामना करना पड़ा था। इनमें बक्सर, आरा, औरंगाबाद और काराकाट जैसी सीटें प्रमुख रहीं।

एनडीए के सामने चुनौती यह है कि विधानसभा चुनाव 2025 में ऐसी नाराजगी दोबारा न हो। इसके लिए एनडीए ने ‘मिशन राजपूत’ अभियान शुरू किया है। इसका उद्देश्य इस समुदाय को अपनी ओर फिर से आकर्षित करना है। एनडीए को इस बार आरजेडी में चल रही उठापटक से भी एक मौका मिला है, जिसका फायदा वह उठाने की पूरी कोशिश कर रहा है।

जगदानंद सिंह और आरजेडी की दुविधा

आरजेडी में वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह के प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने की चर्चाओं ने एनडीए को मौका दे दिया है। आरजेडी में जगदानंद सिंह के अलावा कोई बड़ा राजपूत चेहरा नहीं है। हाल ही में आरजेडी के राष्ट्रीय सम्मेलन में जगदानंद सिंह की अनुपस्थिति ने इन अटकलों को और बल दिया। इस राजनीतिक खालीपन का फायदा उठाकर एनडीए राजपूत वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है।

राजपूत वोटरों को साधने के लिए सांकेतिक आयोजन

एनडीए ने हाल के दिनों में राजपूत समुदाय को लुभाने के लिए कई प्रतीकात्मक कदम उठाए हैं। जेडीयू एमएलसी संजय सिंह के आवास पर आयोजित महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि का कार्यक्रम इसका बड़ा उदाहरण है। इस आयोजन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत कई राजपूत नेता मंच पर मौजूद थे। कार्यक्रम के दौरान यह संदेश दिया गया कि नीतीश कुमार भी महाराणा प्रताप की तरह सभी जातियों और धर्मों को साथ लेकर चलते हैं।

इसी तरह, बीजेपी नेता और मंत्री नीरज कुमार बबलू ने भी राजपूत समाज के साथ अपनी मजबूती को दोहराने के लिए कार्यक्रम आयोजित किया। बीजेपी मंत्री संतोष सिंह ने तो सीधे तौर पर आरजेडी पर राजपूत समाज को ठगने का आरोप लगाया और जगदानंद सिंह को एनडीए में शामिल होने का न्योता दिया।

राजपूत समाज के प्रति एनडीए का ‘सम्मान का संदेश’

एनडीए के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से राजपूत समाज के प्रति अपना सम्मान और आभार व्यक्त किया है। जेडीयू एमएलसी संजय सिंह ने कहा, “राजपूत समाज शुरू से ही एनडीए के साथ रहा है और आगे भी रहेगा क्योंकि एनडीए ने हमेशा उन्हें सम्मान दिया है।” यह संदेश राजपूत समुदाय के मनोबल को बढ़ाने और उनकी नाराजगी दूर करने का प्रयास है।

राजनीतिक समीकरण: 2024 से सबक, 2025 की तैयारी

2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को राजपूत वोटरों की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ा। इस दौरान पवन सिंह जैसे नेता को उनकी पसंदीदा सीट से टिकट नहीं मिलने के कारण समुदाय में असंतोष देखा गया। एनडीए यह सुनिश्चित करना चाहता है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में ऐसी स्थिति दोबारा न हो।

एनडीए का ‘मिशन राजपूत’ अभियान न केवल वोटरों को जोड़ने की कवायद है, बल्कि आरजेडी के भीतर की कमजोरियों का फायदा उठाने की रणनीति भी है। आरजेडी के पास वर्तमान में राजपूत समुदाय को प्रतिनिधित्व देने के लिए कोई बड़ा चेहरा नहीं है। इस कमी को एनडीए अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रहा है।

राजपूत वोटरों का प्रभाव और आगामी चुनाव

राजपूत समुदाय की छोटी आबादी होने के बावजूद यह कई क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाता है। काराकाट, बक्सर, आरा और औरंगाबाद जैसी सीटें इसका प्रमुख उदाहरण हैं। एनडीए यह समझता है कि इस समुदाय को साधे बिना 2025 के चुनावों में बड़ी जीत मुश्किल हो सकती है।

निष्कर्ष

बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती है। एनडीए का ‘मिशन राजपूत’ अभियान इसी राजनीति का हिस्सा है। 2025 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए एनडीए ने राजपूत वोटरों को साधने की कोशिशें तेज कर दी हैं। आरजेडी में जगदानंद सिंह की स्थिति ने एनडीए को एक अवसर प्रदान किया है। इस मौके का लाभ उठाकर एनडीए अपने परंपरागत वोट बैंक को फिर से मजबूत करना चाहता है।

राजपूत वोटरों को लेकर एनडीए की सक्रियता यह साबित करती है कि बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा महत्वपूर्ण रहेंगे। आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए की यह रणनीति कितना प्रभाव डालती है और क्या राजपूत वोटर फिर से एनडीए के पक्ष में मजबूती से खड़े होंगे।

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