कोई काम छोटा नहीं होता। यह बात पश्चिम बंगाल के कोलाघाट के रहने वाले अरूप कुमार घोष ने साबित कर दी है। कभी छोटी सी दुकान पर गेंदे के फूल बेचने वाले अरूप ने अपनी मेहनत और लगन से केवल फूलों की खेती और कारोबार के जरिए करोड़ों रुपये का साम्राज्य खड़ा कर दिया। उनकी सफलता की कहानी लाखों लोगों को प्रेरणा देती है। आज हम आपको उनकी इस प्रेरणादायक यात्रा के बारे में बताएंगे।
बचपन से था फूलों का लगाव
अरूप कुमार घोष का जन्म पश्चिम बंगाल के कोलाघाट में हुआ, जो भारत में फूलों की खेती और सप्लाई के लिए प्रसिद्ध है। एक साधारण परिवार में पले-बढ़े अरूप को बचपन से ही फूलों में गहरी रुचि थी। उन्होंने कम उम्र में ही यह सपना देख लिया था कि वह फूलों का व्यवसाय करेंगे। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने 17 साल की उम्र में फूल विक्रेताओं के साथ काम करना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्होंने फूलों की किस्मों, उनकी मांग और बिजनेस के तौर-तरीकों को बारीकी से समझा।
हैदराबाद में नौकरी से शुरुआत
फूलों के कारोबार को और गहराई से समझने के लिए अरूप ने हैदराबाद के प्रसिद्ध गुडीमलकापुर फूल बाजार का रुख किया। वहां उन्होंने एक फूल की दुकान पर नौकरी करना शुरू किया। उन्हें महीने में केवल 3500 रुपये की तनख्वाह मिलती थी, लेकिन उनका मकसद पैसे कमाना नहीं, बल्कि फूलों के व्यवसाय के बारे में सीखना था। इस नौकरी के दौरान उन्हें फूलों की खेती, गुणवत्ता और बाजार की मांग को समझने का मौका मिला।
अपने गांव लौटकर किया शुरुआत
कुछ साल बाद अरूप ने नौकरी छोड़कर अपने गांव लौटने का फैसला किया। गांव लौटकर उन्होंने अपनी छोटी सी फूलों की दुकान खोली और स्थानीय बाजार में फूल बेचना शुरू किया। हालांकि, अरूप का सपना यहीं खत्म नहीं हुआ। उन्होंने महसूस किया कि अगर वह खुद फूलों की खेती करेंगे, तो इससे उनका मुनाफा कई गुना बढ़ सकता है। इसके बाद उन्होंने 2011 में एक बीघा जमीन पट्टे पर लेकर गेंदे के फूलों की खेती शुरू की।
शुरुआती असफलता और थाईलैंड से सीखा हुनर
शुरुआत में अरूप को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके फैसले से उन्हें आर्थिक नुकसान हुआ, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने गेंदे के फूलों की गुणवत्ता सुधारने के लिए थाईलैंड का रुख किया। वहां उन्होंने तीन महीने तक ट्रेनिंग ली और हाई क्वालिटी वाले टेनिस बॉल किस्म के गेंदे के फूल और उनके बीज तैयार करने की तकनीक सीखी। ट्रेनिंग के बाद वह थाईलैंड से 25 ग्राम बीज लेकर भारत लौटे और नए जोश के साथ खेती शुरू की।
मेहनत रंग लाई: करोड़ों का कारोबार
थाईलैंड से ट्रेनिंग लेकर लौटने के बाद अरूप ने नई तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए गेंदे के फूलों की खेती शुरू की। उन्होंने टेनिस बॉल किस्म का गेंदा उगाना शुरू किया, जो बाजार में 100 रुपये प्रति किलो की दर पर बिकने लगा। धीरे-धीरे इस फूल की मांग बढ़ने लगी और अरूप का कारोबार तेजी से बढ़ने लगा।
अरूप ने गेंदे के फूलों के साथ-साथ उनके बीज और पौधे भी बेचना शुरू कर दिया। उनकी इनोवेटिव सोच और कड़ी मेहनत ने उन्हें सफलता के शिखर पर पहुंचा दिया। आज उनके कारोबार की वार्षिक आय 5 करोड़ रुपये से ज्यादा है।
सफलता के मंत्र: सीखने और आगे बढ़ने की ललक
अरूप कुमार घोष की कहानी हमें सिखाती है कि सफलता पाने के लिए कड़ी मेहनत और सीखने की ललक सबसे जरूरी है। उन्होंने मुश्किल समय में भी कभी हार नहीं मानी और हर असफलता को अपने लिए सीखने का मौका बनाया।
समाज के लिए प्रेरणा
आज अरूप न केवल खुद की सफलता की कहानी लिख रहे हैं, बल्कि अपने गांव के अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा बने हुए हैं। वह स्थानीय किसानों को फूलों की खेती और नई तकनीकों के बारे में जानकारी देते हैं। उनकी सफलता ने कई युवाओं को भी यह विश्वास दिलाया है कि अगर मेहनत और सच्ची लगन हो, तो कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता।
आने वाले समय की योजनाएं
अरूप अब अपने कारोबार को और भी विस्तार देने की योजना बना रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि वह भारत के अन्य राज्यों में भी अपने फूलों और बीजों की सप्लाई करें और इंटरनेशनल मार्केट में भी अपनी जगह बनाएं।
अरूप कुमार घोष की यह कहानी उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है जो छोटे से शुरुआत कर अपने सपनों को साकार करने का हौसला रखते हैं। उनके सफर ने यह साबित कर दिया है कि अगर आप अपने सपने को साकार करने के लिए दृढ़ निश्चय कर लें, तो सफलता आपके कदम चूमेगी।